वो माँ की गोद,वो पापा के कंधे
वो पेड़ो के झुले, वो सखियों के संग हँसी ठिठोले
न कुछ पाने की आशा, न कुछ खोने का डर
वो कागज की नाव फिर बनाना चाहती हूँ
मैं वो बचपन फिर जीना चाहती हूँ।
अब तो कल की चिंता है, और अधूरे सपने है
पीछे लौटना मुमकिन नही, बहुत दूर अपने है
मंजिलों को ढूढ़ते कहा से कहाँ आ गए है
जो गुजर गया वो लौट नहीं सकता
इसलिए मैं दोबारा इस दुनिया मे आना चाहती हूं
मैं वो बचपन फिर जीना चाहती हूँ।
@बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
Thanks
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