सरला जी बरामदे में आधे घन्टे से घूम रही थी कभी घड़ी देखती तो कभी दरवाजे की और। चेहरा देखकर साफ लग रहा था कि बहुत परेशान है। तभी दरवाजे पर मोटरसाइकिल की आवाज आई। सरला जी ने तुरंत दरवाजे से बाहर देखा।"हाय रे लड़की कितनी देर लगा दी तूने रोज 6 बजे तक आ जाती है और आज 8 बज गए। तेरा फोन भी नही लग रहा था मुझे बहुत चिंता हो रही थी। तेरे पापा बस आते ही होंगे" सरला जी एक सांस में ही सब बोल गईं।
"रिलेक्स माँ क्यों इतनी चिंता लेती हो, दीपक था न मेरे साथ तो डरने की कोई बात नहीं" राधिका ने दीपक की और देखते हुए कहा
"नमस्ते आंटी"
"नमस्ते.. नमस्ते, चल तू अंदर चल बहुत देर हो गई" सरला जी राधिका का हाथ पकड़ कर घर ले आई
"अरे माँ दीपक से बात......" सरला जी ने राधिका को चुप रहने का इशारा किया और अंदर आ गई
तभी दीपक की मोटरसाइकिल की आवाज आई वो जा चुका था।
"ये क्या माँ मेरा फ्रेंड पहली बार घर आया और आपने उससे ठीक से बात तक नहीं की"
"तू तेरे पापा को नही जानती क्या, उनको पता चल गया कि कोई लड़का घर आया था तो अपन दोनो की खैर नही। और ये क्या फ्रेंड फ्रेंड लगा रखा है, कौन है ये लड़का जिसके साथ तू इतनी देर तक घूम रही है।" सरला जी गुस्से में बोली। राधिका और दीपक अच्छे दोस्त थे। राधिका के पापा थोड़े रूढ़िवादी स्वभाव के थे। राधिका का किसी भी लड़के से बात करना उन्हें बिल्कुल पसन्द न आता। दीपक राधिका के कॉलेज में ही पढ़ता था वही दोनो की दोस्ती हुई थी। दीपक स्वभाव से थोड़ा कम बोलने वाला पर पढ़ाई में होशियार छात्र था। क्लास में ज्यादातर उससे इर्ष्या करते थे उसके कम बोलने के चलते उसे सब घमंडी समझते थे। पर इन सबमे अलग राधिका को इन सब बातों से कोई मतलब न था वो अक्सर दीपक से बात करके उससे दोस्ती करने की कोशिश करती।
क्लास में कोई भी उसका दोस्त नही था पर राधिका से उससे दोस्ती हुई। जहाँ भी जाते जो भी करते साथ मे करते ये बात अलग थी कि ये सब पढ़ाई से संबंधित ही होता था। पर बोलने वालों के मुँह कौन बंद कर सकता है। कॉलेज में सभी उन्हें लव बर्ड कहने लगे थे जिससे राधिका कई बार दोस्तों से भी चिढ़ जाती थी। दोनो सबको सफाई देते देते भी थक चुके थे कि उनके बीच दोस्ती से आगे कुछ भी रिश्ता नही है। इसी तरह कॉलेज के तीन साल भी गुजर गए। इस बीच दीपक ने कभी अपनी सीमा नही लांघी राधिका को उसने हमेशा दोस्त की नजर से ही देखा। उसके लिए तो राधिका सिर्फ अच्छी दोस्त थी जिसने खुद आगे बढ़कर उससे दोस्ती की थी। किस्मत से दोनो का कॉलेज के सेमिनार में आई एक ही प्लेसमेंट कंपनी में सिलेक्शन भी हो गया तब से दोनो ऑफिस में कुलिग भी बन गए थे। इस बीच उनकी दोस्ती भी गहरी होती गई। अपना हर सुख दुख, मन की बाते शेयर करते। ऐसे तो दोनो के और भी कई दोस्त थे पर जब बेस्ट फ़्रेंड्स की बात उठती तो दोनो ही एक दूसरे को याद करते। पर उन पर चुटकी लेने का सिलसिला यहाँ भी बंद नही हुआ।हमारा समाज लड़के और लड़की के रिश्ते को दोस्ती की नजर से कभी स्वीकार नही करता। हम वास्तविक स्वरूप जाने बगैर ही किसी के लिए मन मे अवधारणा बना लेते है। दीपक और राधिका के साथ भी यही कहानी थी। इसी के चलते राधिका कभी दीपक को अपने घर न बुला सकी। ये दोस्ती सिर्फ़ घर के बाहर तक ही थी। पर आज राधिका को ऑफिस में देर हो गई थी और ऑफिस की स्टाफ बस भी पांच बजे जा चुकी थी। राधिका के मना करने पर भी दोस्त का फर्ज निभाते हुए दीपक उसे घर तक छोड़ने आया था। पर सरला जी ने दीपक को धन्यवाद देने के बजाय राधिका पर ही गुस्सा करने लगी।
रश्मि के पापा को भी इसकी भनक लग गई थी कि रश्मि किसी लड़के के साथ देखी गई है। मोहल्ले के लोगो इस बात को और अधिक मिर्च मसाला लगा कर मनोहर जी के सामने पेश किया। शाम को रश्मि के ऑफिस से आते ही मनोहर जी ने एक चाटा रश्मि के गाल पर जड़ दिया।"ऑफिस के बहाने किस किस से मिलती हो मैं सब जानता हूं आज से काम पर जाना भी बंद है तुम्हारा" मनोहर जी गुस्से से बोले
"पर मेरी गलती क्या है पापा" रश्मि ने आँसू पोछते हुए कहा
"लड़को के साथ घूमती फिरती है और पुछती है गलती क्या है"
"आप गलत समझ रहे है हम सिर्फ अच्छे दोस्त है और कुछ नही"
"मुझे मत पढ़ाओ मैं सब जानता हूँ लड़के लड़की कभी दोस्त होते है भला। लड़कियां कम पड़ गई है क्या जो लड़को को दोस्त बनाती फिर रही"
"शांत हो जाओ जी बच्ची है गलती हो गई" सरला जी ने मनोहर जी से कहा
"बच्ची नही रह गई अब जल्दी ही इसकी शादी करवानी होगी" कहते हुए मनोहर जी गुस्से में बाहर निकल गए। हो"
हमारा समाज ही कुछ ऐसा है। एक लड़का और लड़की को लोग दोस्त की नजर से कभी नही देखते अगर उनके बीच दोस्ती है तो लोग यही कहते है कि जरूर इनके बीच कुछ चल रहा है।
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@बबिता कुशवाहा
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