इक्कसवीं सदी की नारी हुँ मैं

नारी शक्ति को बयां करती कविता

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 09 Mar, 2021 | 1 min read
Women power Women's day Poetry

दुनिया की नजरों में कमजोर कहलाती हूँ

इसलिए अक्सर पिंजरे में डाली जाती हूँ,

देखकर जमाने की नजरों को मैं अचंभित सी रह जाती हूँ,

जब खुद से जन्मी इस दुनिया में खुद को असुरक्षित पाती हूँ,

बराबरी की इस दुनिया में खुद को पीछे खड़ा पाती हूँ,

काबिलियत कितनी भी हो नारी समझ रोक दी जाती हूँ,

क्यों मेरा बेबाक सा होना तुझें पसन्द नहीं,

पर तेरी पसन्द नापसंद के बारे में सोचने के लिए भी मैं मजबूर नहीं,

बेशक कुतर डालों पंख मेरे

पर आंखों में बसे सपनों को कैसे रोक पाओगे

उड़ जाऊँगी एक दिन खुले आसमान में

और तुम देखते रह जाओगे,

क्योंकि गिर गिर कर ही सही संभलना सीखा है मैंने

पैरों में पड़ी बेड़ियों को भी शस्त्र बनाया है मैंने,

चाह रखने वाली कभी किसी के कंधे की

अब किसी के सहारे की मोहताज नहीं

क्योंकि सक्षम हूँ मैं, काबिल हूँ मैं, आत्मनिर्भर हूँ मैं,

इक्कसवीं सदी की नारी हूँ मैं

हाँ इक्कसवीं सदी की नारी हूँ मैं।।

@बबिता कुशवाहा

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