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मेरी माँ

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 11 May, 2020 | 0 mins read

जब खुद माँ बनी तो बात ये समझ आई
मेरे लिए है तूने कितने कष्ट उठाई
चोट मुझे लगी तो आंख तेरी भर आईं
मुझे खिला के पेट भर तू सुखी रोटी खाई
कितने भी गम में हो पर मुझे देख हमेशा मुस्काई
अपने सारे दुखो को तूने हँसी के पीछे छुपाई
मेरे लिए न जाने कितनी राते तूने जाग कर बिताई
मुझे दिला कर नए कपड़े तू
वही पुरानी साड़ी पहनते आई
जब भी मेरी कश्ती मंझधार में आई
दुआ करती हुई तू मेरे ख्वाबो में आई
अपनी संतान के लिए हजारों त्याग तू करती आई
मेरे अस्तित्व के लिए तू दुनिया से लड़ती आई
नही चाहती थी तुझसे दूर होना पर
समाज ने यह रीत ही ऐसी बनाई
छोड़ के सूना माँ का आंगन
हर बेटी हुई पराई
तेरे संघर्षों को मैं माँ बनके ही समझ पाई
जानती हूं साथ नही है तू
पर तेरी दुआ दूर से ही रंग लाई
बहुत किस्मत वाली हु मैं जो तू मेरे हिस्से में आई।

स्वरचित एवं अप्रकाशित

बबिता कुशवाहा

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