सहारो

बुंदेलखंड़ी लघु कथा

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 04 May, 2020 | 0 mins read

"अम्मा ओ अम्मा...." चिल्लात छोटू रोउत चलो आओ

"का भओ, काय रोउत" चंदा बोली

"उ राजू ने मोरी गेंद ले लइ और अब मोये खेला भी नही रओ"

"कित्ती बेर कओ तोसे की उ राजू के संगे न खेले करे लेकिन तोये तो कछु समझ मेई नई आउत"

इत्ते में छोटू को पिता लखन दारू पी के चलो आओ छोटू रोऊँत उके पास गओ ओर उए भी गेंद वाली बात बताई। लखन ने एक तमाचों छोटू के गाल पे दे मारो। और दारू के नशे में चंदा की भी पिटाई करन लगो। जो एक देना की बात न ती। लखन रोज दारू पीके आउत तो और चंदा की पिटाई करत तो। बेचारी चंदा देनभर मेहनत मजदूरी करें और लखन रोज आ के उसे पइसा छोड़ा ले। चंदा रोज भगवान से बिनती करे कि उको पति दारू छोड़ के जिम्मेदार बन जाएं और सोधर जाये लेकेन आज चंदा को धैर्य जवाब दे गओ उने भगवान से कई की ऐसे पति से तो बेना पति ही अच्छो। लखन आँगन में फेर दारू पिअन लगो। दोनउ मताई बेटा रोउत रोउत सो गए।

सोबेरे जब चंदा उठी तो लखन आंगन में ही डरो तो एंगर गई तो मो पे माछी भेनक रइ ती। ज्यादा दारू पिबे से रात के दिल को दोरो पड़ो तो। चंदा की चीख नेकल परी और दहाड़े मार के रोन लगी रोबो सोन पास परोस के आदमी भी जुरन लगे। रो रो के चंदा भगवान का कोसन लगी कि "मोरे छोटू के मूड से बाप को साया छीन लओ तेने। ते भी गजब है भगवान इत्ते देना से तोसे के रइ की पति की दारू छूट जाये तो भगवान ने सुनी नइया और कल गुस्सन में ऐसेइ के दइ तो तेने तुरंत सुन लई। अब हम की के सहारे जिईये।"

इत्ते में छोटू आओ ओर मताई के आंसू पोछ के बोलो ते काय चिंता करत है अम्मा में तो हो तोरो सहारो।

स्वरचित, अप्रकाशित

@बबिता कुशवाहा

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