आज फिर मेरी नजर उन खतों पर पड़ी। मेरे लिखे बहुत से खतों में एक खत उसका भी था। उसको देखते ही आंखों में पानी छलछला आया। आंसू की बूंद जब खत पर गिरी तो स्वतः ही धूल साफ हो गई और उसमें लिखे अक्षर आंखों के सामने तैरने लगे।
"समझ नही आता कहा से शुरू करू। तुम्हारे झूठे वादे से या तुम्हारे झूठे रूप से। वह रूप जिसने मेरा जीवन नर्क बना दिया। अभी जिंदगी को समझना शुरू ही किया था कि तुम मिले मुझे। तुमसे मिलकर ही मैंने खुद को बेहतर जाना था। तुम्हारा मुझे यू एकटक देखना, मेरी हर ख़्वाहिशों को पूरा करना, मेरी चिंता करना मुझे तुम्हारे और करीब ला देता था। एक दूसरी दुनिया ही बना ली थी मैने... मेरी और तुम्हारी दुनिया।
अपने लिए तुमको भी इतना ही बेचैन देखा था मैंने। कितनी बार तुम घर पर झूठ बोल कर मेरे शहर मुझसे मिलने आया करते थे। घूमना-फिरना, मूवी देखना, शॉपिंग करना सब एक हो गया था हमारा। साथ साथ रहकर शादी के ख्वाब भी देखने लगे थे हम। याद है कितनी मुश्किल से पापा को मनाया था मैंने लेकिन उन्होंने भी तुम्हारे सामने शर्त रखी थी... तुम्हारी नोकरी की शर्त। उनकी लाड़ली जो थी, जानती हूं मेरी खुशी के लिए ही ऐसा किया था उन्होंने और तुमने भी मेरे लिए कड़ी मेहनत कर सरकारी नोकरी भी पा ली थी। शादी भी धूमधाम से हुई थी हमारी।
पर वो कहते है ना कि हम किसी को कितना भी जान ले लेकिन असली पहचान तो साथ रहने पर ही पता चलती है। काश हमारी कभी शादी ही न होती तो मुझे तुम्हारा दूसरा रूप कभी देखने को न मिलता..तुम्हारा शक का रूप। तुम्हारा मुझ पर यू बेवजह शक करना, बात बात पर मुझे टोकना, शक के कारण माँ पापा से भी मिलने जाने से रोकना मुझे अंदर से तोड़ने लगा। मैंने कितनी कोशिश की हमारे रिश्ते को बचाने की लेकिन तुम तो जैसे समझना ही नही चाहते थे। और एक दिन तुम्हारे इसी शक ने भयंकर रूप ले लिया जब तुमने मुझपर हाथ उठाया था। फिर अब तो यह रोज का ही सिलसिला हो गया था। लेकिन अब बात हाथ उठाने तल सीमित न रही। अब तुम काम का बहाना बना महीनों तक घर नही आते फोन तक नही करते और जब भी घर आते अपनी ही दुनिया मे खोए रहते। एक मिनट भी खुद को फ़ोन से दूर नही करते। शायद अब तुम्हे मेरी जरूरत नही।
पर अब बहुत हुआ यह घुटन भरी जिंदगी मैं और नही जी सकती राकेश और न अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को जीने दूँगी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन तुम्हारे शक को नही मिटा सकी। मैं अंदर से बिल्कुल टूट गई हूं। दुनिया मे आज सबका इलाज संभव है मगर शक का कोई इलाज नही। यही शक का साया मैं अपने होने वाले बच्चे पर नही पड़ने दूँगी। मैं जा रही हु। मुझे नही पता कहा जाऊँगी... क्या करुँगी.... लेकिन यह जरूर जानती हूं हम जहाँ भी होगे खुश होंगे। जा रही हु तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए। डाइवोर्स के पेपर साइन करके अलमारी में रख दिये है। मुझे ढूढ़ने की कोशिश मत करना हो सकता है मैं तुम्हे कभी न मिलु
कभी तुम्हारी थी प्रिया
उसके जाने के बाद मुझे उसकी कमी और अपनी गलती का एहसास हुआ। प्रिया के साथ शादी से पहले बिताए खुशनुमा पल मुझे याद आने लगे थे मैंने उसके साथ बहुत ही बुरा बर्ताव किया और वह हमारे रिश्ते को बचाने के लिए सब सहती रही। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अपने पापों का प्रायश्चित कैसे करता..? किससे माफी मांगता...? अपने माफीनामे के मैने उसे कई खत लिखे पर कभी पोस्ट नही किये। आखिर पोस्ट भी करता तो किस पते पर करता..? वो कहा है मैं आज तक नही जान पाया। प्रिया के लिखे इस आखिरी खत को पढ़ कर मैं इतने सालों से पल पल पश्चाताप की अग्नि में जल रहा हु।
@बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.