बुंदेली कविता

मध्यप्रदेश की सबसे प्रचलित भाषा बुन्देलखंडी में कविता

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 27 Apr, 2020 | 1 min read

हमारी पेपरविफ़ की सी.ई.ओ. वृन्दा मैडम के प्रोत्साहन पर पहली बार मै अपनी जन्मभूमि की भाषा बुंदेलखंड़ी में अपने द्वारा स्वरचित कविता लिख रही हु। अगर आपको पसंद आये तो कंमेंट करके जरूर बताएं।

मनुष्य और प्रकृति

सबरऊ जंगा मचो कोरोना कोरोना

देख के सबरन की दशा

सबखा आ रओ रोबो

छुट्टा फेर रओ है वायरस

घोसो है भीतर खिलौनों।

रुक गओ है हवा में धुओं

प्रकृति गान लगी है गाना

खोल गओ है बादल

देखान लगो है बर्फ को बिछौना

चिरैयां भी चहचहा के केह रई

लॉक डाउन कबहुँ खुले न।

मान लो अब तो खुद की गलती

प्रकृति को दोहन कबहुँ करियो न

आओ सबइ मिलके संकल्प करिये

कुदरत से खेलवाड़ अब न करिये

प्रकृति को भी उको हिस्सों दइये

अब ज्यादा मतलबी नई बनिये।

इस कविता का हिंदी ट्रांसलेशन मैं अपनी प्रोफाइल पर पहले कर चुकी हूं आप इस लिंक पर जा कर पढ़ सकते है।

मनुष्य और प्रकृति (कोरोना-कोरोना)

https://www.paperwiff.com/a/@shubham7l8w/मनषय-और-परकत-5e9e77be2b733

@बबिता कुशवाहा

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