"मम्मा आज दीवाली है क्या" पांच साल के बेटे ने मासूमियत से पूछा
"नही बेटा आज दीवाली नही है"
"तो सब दिए क्यों जला रहे है सामने वाली आंटी भी बाहर दिए जला रही है आप कह रही थी कि दुनिया मुसीबत में है तो मुसीबत में दिए जलाते है?" बेटे ने बड़े भोलेपन से कहा।
लेकिन मेरे पास उस समय ऐसा जवाब नही था कि मैं उसे समझा पाती। उसके सवाल ने आज मुझे सोचने के मजबूर कर दिया कि वाकई मुसीबत में दिए नही जलाए जाते?
पर अंधेरे में तो जला सकते है न। हां अंधेरा ही तो है आज चारो तरफ कोरोना संकट का अंधेरा और अंधेरे को एक छोटा सा दिया भी दूर कर सकता है तो फिर हम तो करोड़ों है और जब करोड़ो लोग करोड़ों दिए जलाएंगे तो इस कोरोना संकट के अंधेरे को जाना ही होगा।
आपने वो कहावत तो जरूर सुनी होगी कि उम्मीदी की मद्धिम लौ नाउम्मीदी से बेहतर है। ये कहावत अप्रैल को रात 9 बजे आप सभी ने महसूस की होगी। एक और आज पूरा देश कोरोना से जंग लड़ रहा है इस संकट में भी हमारे देश ने एकता की महाशक्ति का प्रदर्शन किया। जब 9 बजते ही 9 मिनट के लिए लोगो ने अपने घरों की बत्तियां बुझा कर दिए, कैंडिल, टार्च और मोबाइल के लाइट से रोशनी की। आज सभी भारतवासियों ने उम्मीद के दिये जरूर जलाए होंगे। सभी ने यह संदेश दिया कि कोरोना के अंधेरे के खिलाफ पूरा देश एक साथ है। इस रोशनी का मकसद कोरोना से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिसकर्मियों के प्रति आभार जताने के साथ साथ लॉक डाउन के माहौल में निराशा को दूर करना था।
चारो तरफ निराशा और भय पसरा हुआ है। कोरोना संकट से जो अंधकार और अनिश्चितता पैदा हुई है इस बीच मे अंधकारमय कोरोना संकट को पराजित करने के लिए हमने प्रकाश के तेज को चारों दिशाओं में फैलाया तथा लोगो की निराशा को आशा में बदलने का प्रयास किया। लॉक डाउन में करोड़ों लोग घरों में है कुछ लोग सोचते है कि और कितने दिन हमे ऐसे काटने पड़ेंगे। लेकिन यह लॉक डाउन और परेशानी का समय जरूर है लेकिन आज जब सबने एक साथ घरों में दिया, मोमबत्ती और टार्च जलाए तब सभी को यह एहसास जरूर हुआ होगा कि इस संकट में कोई अकेला नही बल्कि सब एक साथ है। सब साथ मिलकर इस कोरोना को जरूर हरा देंगे। घर पर रहे, स्वस्थ रहे।
@बबिता कुशवाहा
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