मुझे अखबार पढ़ना बहुत पसंद है पहले काम की व्यस्तता के कारण मैं अखबार ठीक से नही पढ़ पाती थी सिर्फ जरूरी या हेडलाइन ही पढ़ती थी। लेकिन अब लॉक डाउन के समय मैं पूरा न्यूजपेपर बेफिक्री से पढ़ पाती हूँ। आज अखबार पढ़ते हुए मेरी नजर एक खबर पर आ कर ठहर गई। उस खबर ने मुझे आज यह सोचने को मजबूर कर दिया कि जहाँ एक और हमारे देश के लोग एकता की मिसाल रखते है वही कुछ असंवेदनशील लोग ऐसे भी है जो सहायता करने वाले लोगो का ही तिरस्कार कर देते है।
शायद आप लोगो ने भी यह खबर पड़ी होगी कि हमारे डॉक्टर्स और दूसरा मेडिकल स्टाफ किस तरह अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए अपनी जान जोखिम में डाल कर इस समय कोरोना महामारी से लड़ रहे है लेकिन जब यही डॉक्टर्स, नर्सेस अपने घर पहुँचते है तो सोसायटी के लोगो ने इनका तिरस्कार कर उपेक्षा की। कुछ मकान मालिक ने अपने किराएदारों को इसलिए निकल जाने को कहा क्योंकि वे हॉस्पिटल में नर्स है कोरोना मरीजो का इलाज करती है।
जहाँ एक और पूरा देश कोरोना से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मियों, हॉस्पिटल स्टाफ व अन्य जरूरी सेवाएं देने वालो का थाली, शंख बजाकर धन्यवाद दे रहे है वही इन्ही में से कुछ स्वार्थी लोग ऐसे भी है जो इन्ही लोगो की उपेक्षा करने से भी पीछे नही हट रहे। जबकि यह बिल्कुल ही गलत है यह लोग हमारे बच्चो, हमारे परिवार के लिए स्वयं जान दाव पर लगा रहे है और हम उनके साथ ऐसा व्यवहार कर रहे है। इस महामारी में तो भगवान ने भी दरवाजे बंद कर रखे है अभी तो मानो इन्होंने ही भगवान का रूप ले लिया है। कल को इन्ही लोगो मे से किसी को कोरोना हो तो ये भी इन्ही भगवान रूपी डॉक्टर्स के पास ही जायेंगे। इस तरह का भेदभाव सही नही है जो तालियों और प्रशंसा के काबिल है कृपा उनके साथ ऐसा व्यवहार न करें।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो जरूरी सेवा से जुड़े कर्मचारी, डॉक्टर, नर्सेस, पायलट कोई भी समाज सेवा के लिए तत्पर नही होगा और कोरोना की लड़ाई देश कभी जीत नही पायेंगा। साथ ही तिरस्कार और अलगाव के डर से कोई भी व्यक्ति या परिवार आगे आकर कभी यह बताने को तैयार नही होगा कि उसके परिजन में यह लक्षण दिखाई दे रहे है। तिरस्कार और भेदभाव हमारे देश मे कोरोना संकट को और अधिक बड़ा सकती है।
इस विषय मे आपकी क्या राय है कमेंट करके जरुर बताए। लेख पसन्द आये तो मुझे फॉलो करें। धन्यवाद
@बबिता कुशवाहा
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