कोरोना के साथ साथ चारो तरफ लॉक डाउन के ही चर्चे है आज मुझे अपने बचपन की बात याद आ गई कि जब माँ पापा बताया करते थे कि कैसे उनके समय मे इंदिरा गांधी के जमाने में इमरजेंसी लगीं थी पूरा जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया था।
तो मैं सोचती थी ऐसा भी क्या हो जाता है जो इस तरह इमरजेंसी लगती है।
आज जब मैंने स्वयं अपने जीवन मे लॉक डाउन की इमरजेंसी देखी तब मुझे एहसास हुआ कि कैसे यह लॉक डाउन पूरे देश को प्रभावित कर रहा है भले ही यह लॉक डाउन लगा तो हमारी सुरक्षा के लिए ही है पर एक बहुत बड़ा जनजीवन इससे प्रभावित हो रहा है विशेष कर गरीब व्यक्ति। जब मैंने यह सुना तो सोचा 21 दिन केवल घर पर कैसे गुजरेंगे।
हम तीन लोगों का परिवार है जिसमें मेरे पति बैंक में पदस्थ होने के कारण अभी भी जॉब पर जाते है मैं और बेटा ही घर पर रहते है। पहले बेटे को लेकर शाम को सोसायटी के पार्क में, कभी मार्केट तो कभी दोस्तो से मिलने चली जाया करती थी पर जब से घर मे रहने की बात आई तब से लग रहा था कि अब घर मे ही दिन कैसे पास होगा। पर जब मैंने पेपरविफ़ पर लिखने के कांटेस्ट के बारे में पढ़ा तो मेरी समस्या का समाधान हो गया।
वैसे मुझे लिखने का हमेशा से ही शौक था पर कभी अपने इस शौक को पूरा न कर पाई। इसलिए में पेपरविफ़ की पूरी टीम को धन्यवाद दूँगी की उन्होंने एक ऐसा मंच तैयार किया जब हम अपने मन के भावो को बिना रोक टोक के लिख सकते है। आज सभी घरों में बंद है ऐसे में हम अपने अंदर छुपे लेखक को बाहर निकाल कर अपना शौक पूरा कर सकते है। क्वारंटाइन के समय हमारी कलम ही हमारी एक मात्र साथी है।
तो देर किस बात की कलम उठाओ ओर लिख डालो अपने मन के विचारों को अपने पंसदीदा साइट पपरविफ़ पर। इस संकट की घड़ी में हम सबके लिए कामना करते है की घर मे रहे, स्वस्थ रहे, सुरक्षित रहे।
@बबिता कुशवाहा
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