मोरी माँ,
कल जब तोसे फ़ोन पे बात भई तब से मोरो भोत जी भर रओ है। तोरे सामने पक्को देखवे के लाने खुद के आंसूअन खा भीतर ही पी गओ। भोत सी बातें है जो मैं तो से के नई पाओ एई के लाने मैं लिख के बता रओ। तोरे घाई मोरी भी आंखे तरस गई है तो खा और पापा खा देखबे के लाने। अगर मोखा पतो होतो की लॉकडाउन की मुसीबत आ जे है और मैं कोउ से मिल न पा हो तो कबहुं बाहर जाके पढ़बे की जिद न करतो। अबे हॉस्टल में आये कछु देना तो भये ही हते और मोये तोरी याद आऊंन लगी थी। भोत गलत हतो मैं जो तोरी डांट के पछारु छोपो प्यार नई देख पाओ। बे रोक टोक जो मोरी ही भलाई के लाने हते बे नई समझ पाओ। जेई डांट और रोक टोक पहले मो खा कैद से लगन लगें ते। अपनी जिंदगी अपने तरीका से जीबो चाहत तो आजाद पंछि के घाई और मचल के जिद करके एते होस्टल में रेबे आ गओ। पर एते आ के पतो चलो के कैद और घुटन तो एते परिवार से दूर हॉस्टल मे है। एते न कोउ प्यार करवे वालो है, न कोउ चिंता करवे वालो, न कोउ खावे की पुछबे वालो। अब तो मोये तोरी डांट याद आऊन लगी है। अब मैं अपने सपनन कि दुनिया से बाहर निकर आओ हो। अगर जो लॉक डाउन न होतो तो मैं तोरे पास तोरंत आ जातो। पर ई लॉक डाउन ने मोये परिवार की अहमियत समझा दई है। कबहु कबहु तो लगत है कि काश मोरे पंख होते तो तोरन्त उड़ के आ जातो पर ऐसो तो हो नई सकत पर मैं तो से वादा करत हो कि अब मैं तोये कबहु परेशान न करहो, कबहु तो खा छोड़ के न जे हो। मो खा ऐसी आजादी नई चाने जी मे ते संगे न हो। लॉक डाउन खोलत ही आहो। ते चिंता न करिये।
तोरो बेटा
सोम
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