रंगरेजिन★
"कभी जिंदगी में इस एक रंग के अलावा भी रंग पहना है क्या?"
लाल रंग की साड़ी में सजी शब्बो ने रंगरेजिन पर ताना कसा।
"जब लोगों के कपड़े मेरा मरहूम रंगरेज रंगता था न तो सारे रंग मेरे ही लिबास से चुनता था।" रंगरेजिन ने शब्बो के हाथ से बदरंग कपड़े लेते हुए जवाब दिया।
"अब कहाँ गए तेरे लिबास के रंग ?"
शब्बो ने तल्खी से पूछा ।
"कुछ बच्चों के इंद्रधनुषी सपनों में चले गए और कुछ तुम जैसी सखियों के कपड़े रंगने में और जो बचे वह यह है खुशियों के रंग!"
रंगरेजिन ने हंसते हुए अपने हाथ में छुपा हुआ लाल रंग शब्बो के गालों पर मल दिया।
"होली मुबारक हो शब्बो!"
"तुम्हें भी हमारी रंगरेजिन!"
मुस्कुराती हुई शब्बो ने भी लाल रंग से सने अपने गाल रंगरेजिन के गालों से सटा दिए।
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
खूबसूरत रचना 👌👌
बहुत बढ़िया रचना..
स्त्री ही स्त्री के दर्द को समझ सकती है मगर आपने भी समझ लिया
बहुत उम्दा रचना👍👍👏👏👏
शानदार रचना👏👏
वाह
शिक्षात्मक👌👌
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