उसने एक छोटी-सी सफ़ेद पाउडर की पुडिया खोली और सावधानी से सिगरेट की चमकीली पन्नी पर उंडेल दी ।
अपनी जुबान ऊपर के दांतों पर टिका कर, नीचे पचास पैसे का गंदला-सा सिक्का रखा और जुबान नीचे करने के साथ ही कागज की बनी पोपली नली अपने होंठो में सिगरेट के मानिंद फंसा ली ।
मोमबती जलाकर उसने वह पाउडर वाली चमकीली पन्नी के नीचे लगा दी ।
सफ़ेद पाउडर धूसर धुंए में तब्दील होने लगा, उसने पोपली नली धुंए के पास लाई और गहरा कश लिया।
सफ़ेद पाउडर से निकलते बादलों को वह तब तक अपने अंदर खींचता रहा जब तक की पूरा पाउडर धुंआ न बन गया।
उसने अपना सिर ऊपर उठाया और पोपली नली थूक दी , पचास पैसे का सिक्का कोने में लुढका दिया और जलती हुई मोमबती को लाल आँखों से घूरता रहा ।
उस मोमबती की नाचती लौ कभी ऊपर की ओर उठ जाती आसमान में, कभी कुंए में उतर जाती पाताल के सफ़र के लिए और फिर उस कुंए से निकलती अनगिनत चमकदार रंगीनियां, रंगीन गोले और चमकीले अंतर्वस्त्र, कभी उन वस्त्रों में लिपटी हुई मादक युवतियां ।
कामिनी कहाँ है उनमें ?
कई नग्न पुरुषों के बीच आधे-अधूरे वस्त्र पहनी कामिनी भी उसे दिख ही जाती।
वह बहुत कोशिश करता उन पुरुषों को उसके जिस्म से परे हटाने की लेकिन उसे हमेशा असफलता ही हाथ लगती और कामिनी किसी और पुरुष के साथ नीचे लपलपाते हाथों को रोंदते हुए चली जाती सितारों की ओर मगर आज उसने सफलता पा ही ली, कामिनी उसके साथ थी सिर्फ उसके जिस्म की आगोश में ।
समुद्र की डूबती-उतराती लहरों में दो जिस्म एक दुसरे से लिपटे हुए अपने खोये हुए प्यार को महसूस कर रहे थे।
शनैः शनैः रात गहराने लगी ज्यों ही उसे लगने लगा की कामिनी उससे कहीं दूर जा रही है और कठोर वास्तविक धरातल उसकी पसलियों को दस्तक दे रहा है, उसने फिर पुडिया निकाल ली और इसबार उसके कांपते हाथ उसे वही कसरत फिर दोहराने से रोकने की कोशिश कर रहे थे ।
उसने कांपते हाथो से बड़ी मुश्किल से पुडिया खोली और सीधा नाक के पास ले जाकर कुछ गहरी साँसों से अंदर खींच ली। गहन अंधकार में भी रंग-बिरंगी रोशनियां नाचने लगी।
वह किसी गहरे समुंदर में डूबता-उतरता फिर कामिनी के बदन की तलाश करने लगा लेकिन इसबार आसमान से गिरता कोई काला गोला उसके सिर से टकराया।
उसकी आँखे बंद हुई जा रही थी, की अचानक जमीन के बीच बनी दरार ने उसे अपने अंदर खींच लिया ।
छाती तक धंसा वह खुद को ऊपर उठाने की कोशिश करने लगा।
धरती उसके सीने को दबाती जा रही थी मानो माँ अपने पिलाये दूध का एक-एक कतरा निचोड़ लेना चाहती हो ।
वास्तविकता उसे अपनाना चाहती लेकिन उसे तो आभासी रंगीनियों में ही जीना था यही उसने अपनी नियति बना ली थी। वास्तविक रिश्तो नें ही तो उसे इस रंगीनियों में जाने को मजबूर किया था।
सुबह का उजाला रात का अंधकार चीर कर धरती पर अपनी गर्माहट फैला रहा था। सूरज की गर्माहट उस ठंडे पड़े जिस्म तक भी पहुंची जिसके सपने हकीकत में बदलने से पहले ही आभासी रंगीनियों में कहीं खो चुके थे ।
धूसर बादल और उजले कण, सफ़ेद झाग में तब्दील हो उसके मुंह से निकल कर गाल पर काल की तरह फ़ैल चुके थे ।
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
It's really sad....😢
ओह! कितना भयावह
डर लगा पढ़ कर😢😢
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