द्वितीय विश्वयुद्ध जापान के आत्मसमर्पण के साथ ही ख़त्म हो गया लेकिन परमाणु विकिरण का शिकार सू ची लगभग साठ दर्दनाक शल्यक्रियाओं के बाद भी अपनी विभत्स काया लिये जीवित था।
"जाने किस मिट्टी का बना है, जो इतने विकिरण और शल्यक्रियाओं के बाद भी जीवित है ?" डॉक्टर आंग सू उसके शरीर के घाव देखकर बोली।
अचानक शरीर ने हरकत की और अपनी इकलौती आँख खोली।
"ला..लाखों लोगों की पी..पीड़ा का दंड भी अनंतकालीन ही होना चाहिए न ?" सू ची डॉक्टर से मुख़ातिब था ।
"ऐसा कौनसा अपराध किया है आपने ? जो लाखों लोगों की पीड़ा का कारण बना ?" आंग सू ने उसके रिसते घावों को स्प्रिट से साफ़ करते हुए पूछा।
"मैं ही वो गु..गुनाहगार हूँ जिसने नागासाकी और हि.. हिरोशिमा की घनी आबादी के निशानदेही करते नक़्शे अमेरिका को भेजे क्योंकि मेरे बा..बाप को जापान के सम्राट हिरोहितो ने देशद्रोह के इल्जाम में मौत की सजा दी थी।"
"आह......ह...ह!" असीमित वेदना से कराहता जिस्म दोहरा हुआ जा रहा था।
"म..म..मैंने अपने बाप की मौत की सजा लाखों बेगुनाह देशवासियों को दी है, उन्हीं बेगुनाहों की पीड़ा अब मुझे अनंतकाल तक मरने नहीं देगी।.... आह..ह...ह!"
वेदना सहन न कर पाने की वजह से शरीर पुन: चेतना शुन्य हो गया।
आंग सू की आँखों में अश्रु जरुर थे लेकिन अब उसे सू ची से घृणा हो रही थी।
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)
Comments
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आपकी रचना सबसे अलग होती है सर।बहुत खूब
वाह....एक अलग सी रचना 👌बेहतरीन लेखन स्तर है आपका।
तो क्या पाप के रूप में अश्वत्थामा हमारे भीतर ही जीवित है??
गजब
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