आडंबर
एक बार एक धर्म के अनुयायी ने यह ठान लिया कि अब से वह नही नहायेगा क्योंकि उसके मुताबिक उसके धर्म की पवित्र किताब में नहाने को वर्जित माना गया है।
उसके इस निर्णय के फलस्वरूप रोज उड़ती हुई धूल-मिट्टी कई परतों के रूप में उसके पहने हुए कपड़ों पर जमा होती रहती थी और वह इन जमी हुई परतों को अपना धार्मिक रक्षा कवच मानने लगा था।
यहां तक कि इस मिट्टी की परतों से बने हुए खोल को वह 'धर्मो रक्षति रक्षितः' की तर्ज पर अपने धार्मिक आख्यानों में उदाहरण की तरह पेश कर देता था।
उड़ती हुई धूल-मिट्टी से दिनोंदिन मोटाई प्राप्त करता यह खोल, उसे यूँ लगने लगता मानो उसके शरीर से जुड़ा उसके ही वजूद का कोई हिस्सा हो और यह धार्मिक कवच हर उस इंसान को धारण करना जरूरी हो जो उसके धर्म से ताल्लुक रखता है या रखना चाहता है।
उसे अपने धार्मिक आख्यानों में बैठी भीड़ में भी, उसके जैसे धार्मिक रक्षाकवच धारण किये हुए कई अनुयायी बैठे दिखाई देते लेकिन उसे उनमें से किसी का भी धार्मिक खोल अपने जैसा मोटा और मजबूत नही दिखता था क्योंकि वह खुद को इस खोल का पहला धारक समझता था।
वह खोल दिन-ब-दिन भारी होता जा रहा था इसलिए अब वह उसे रक्षाकवच कम और एक कैद ज्यादा लगने लगा था लेकिन जब भी वह अपने जैसे खोलधारियों की बढ़ती हुई तादाद को देखता तो उसके उस खोल के वजन का अहसास गर्व में बदल जाता था।
एक दिन उसने जाने किस रौ में उस धार्मिक खोल को उतारकर फेंक दिया और उस खोल के साथ ही उतर गए वह कपड़े, जिसके ऊपर वह खोल चिपका हुआ था। अब वह पूरी तरह नग्न और धार्मिक बोझ से आजाद है, ज्यों कोई नवजात शिशु होता है। उसे यह भी याद नही आ रहा है कि आखिर वह किस धर्म का अनुयायी है क्योंकि सालों से वह उस निर्जीव खोल को ही अपना धर्म मान रहा था।
वह समझ चुका है कि वह खोल उसका धार्मिक रक्षाकवच नही था बल्कि वह खुद उस खोल का रक्षक था।
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
लिक से हटकर उम्दा कृति
धार्मिक आडंबर पर प्रहार करती रचना
वाह, बेहतरीन👏👏👏
उम्दा कृति! आडंबर... सटीक विषय सटीक शीर्षक। ऐसे कई खोल, आवरण चढ़ाए हर क्षेत्र में लोग है और एक दिन उसे मान्यता का नाम देने लगते हैं। बेहतरीन प्रतीकात्मक लघुकथा 👌👌
Bahut hi sundar rachana
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