हम उस पाखंड,अंधविश्वास से
लिप्त समाज में जीते हैं
जहाँ ईश्वर के दास को
यह समाज पूजता है
ईश्वर की तरह
वहीं उसी समाज में जन्मा
जाति के दास से
यह समाज अपने ईश्वर को
बचाता है अस्तित्वहीन,
अछूत होने से
यह समाज किस सर्वशक्तिमान
ईश्वर को पूजता है
जो किसी दलित के छूते ही
शक्तिहीन हो जाता है
जो रजोधर्म में रहने वाली स्त्री
के छूते अछूत हो जाता है
अगर यह सच है
तो मै जन्म से दास को
और रजोधर्म में रहने वाली
उस स्त्री को उस ईश्वर से
ऊँचा स्थान दूँगा
जिसके छूने मात्र से वह
ईश्वर अपनी शक्ति खो देता है
जिस ईश्वर को यह समाज पूजता है।।
__आनंद रॉय
Comments
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Very good
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