Dear Diary,
आज aunty और uncle को देख कर बहुत दुःख हुआ । आज मैंने उनको मुझ में निमित को ढूँढते हुए देखा ।जिस बेटे के लिए ज़िंदगी भर दुआ माँगी हो , आज उसे देखना भी नसीब ना हो , इससे बुरा क्या होगा ।
मुझे याद है स्कूल में अगर मुझसे १ no. भी कम आ जाए उसके तो घर जाने से ही कितना डरता था वो। अंकल को बहुत उम्मीदें थी उससे , शायद कुछ ज़्यादा ही ।
मेरे पापा अक्सर उनको समझाते की बच्चे पौधे की तरह होते है, हमें उन्हें ऐसा माहौल देना है कि वो फलदार पेड़ बने, कौन सा पेड़ बनेंगे , यह हम निर्णय नहीं ले सकते।परंतु अगर हम अपनी अपेक्षा का भोझ उन पर डालेंगे तो बच्चे मुरझा जाएँगे।
पर अंकल कभी नहीं मानते । हम जैसे जैसे बड़े होते गए , मैंने उसे इंट्रवर्ट ओर फ़्रस्ट्रेटेड होते हुए देखा। कैसे वो क्रिकेट खेलते समय आउट होने पर ग़ुस्से से रोहन के सर पे बैट दे मारा था। पढ़ाई में तो मानो वो जानबूझकर पिछड़ता जा रहा था, क्यूँकि जब हम साथ होते, मैंने तो उससे होशियार किसी को ना पाया ।
12th हुआ, में एंजिनीरिंग करने चला गया। हालाँकि निमित से बात होती थी।पर वो हमेशा यह ही कहता कि “ में मस्त हूँ।”
और जब newspaper में उसकी ख़बर देखी की वो किसी का ख़ून करके फ़रार है, तो मेरे तो पैरों तले ज़मीन खिसक गयी । मेरा बेस्ट फ़्रेंड,उसे तो में बचपन से जानता हूँ, वो ऐसा कर ही नहीं सकता।
पर कैसा दोस्त हूँ में जो उसके दर्द को कभी समझ ही ना पाया। अंकल ने बचपन से उसे अपनी अपेक्षाओ के तले दबा दिया। वो क्लास में 1st आए तो सबको सीना चौड़ा करके बताते थे , पर कभी उसे गले से लगा के नहीं जताया। बस यह ही कहते percentage ज़्यादा आने थे । निमित हमेशा अंकल aunty के status का साधन बन के रहा ।मुझे याद है ,जब 9th में मैं maths में फ़ेल हुआ तो पापा ने कहा “ कोई बात नहीं बेटा, यह तो जीवन का हिस्सा है।और मेहनत करना ओर देखना तुम कैसे सफल नहीं होते ।” ओर फिर पापा भी मेरे साथ मेहनत किया करते।
पर निमित के पापा तो उसके एक नम्बर भी कम आने पर उसकी पिटाई कर देते ।
मैंने निमित में निराशा देखी, उसका frustration इतना ज़्यादा था कि वो कब गुनाह की राह पर चल देगा यह कभी नहीं सोचा था। आज वो कहा है किसी को पता नहीं। police ढूँढ रही है , माँ बाप परेशान है । जिसके बारे में सीना चौड़ा करके तारीफ़ों के पुल बाँधते थे,आज वो ही शर्म का कारण है ।
पर इसमें क्या ग़लती निमित की है ??? शायद हम सब उसके गुनहगार है ।काश उसके पेरेंट्स ने उसे समझा होता । उसकी परवरिश अपनी उम्मीदों के भोझ तले ना की होती ।
तो आज तो काँटेदार वृक्ष की जगह फलदार पेड़ होता ।
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