विजय भारती
31 Jul, 2022
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विहान आज हंसते हुए इस जहां को पाने की जिद्द सा कर लिया था ...! उसे कभी कभी तो हंसी सी आती थी की आखिर ये दुनिया इतनी नीचे क्यों आ बसी है ...!
आज उसे मेघ के मस्त मंजर से पूछना है की आखिर तुम कहां बसते हो और कभी इस धरती पे क्यों नही आते..?
ये हवा से बात करते झूले जैसे विहान का पंख बन गया हो और आज वो चल पड़ा है अपने जिज्ञासा के लिए नभ के सीमा को नापने ......!
वो झूला तो मात्र विहान को जानता है किसी आसमान को नही ....!
✍️✍️विजय भारती✍️🙏🥰
Paperwiff
by 2790
31 Jul, 2022
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