फेसबुक बंदी का खौफ (व्यंग्य)
किसी ने मार्केट में खबर फैला दी कि भारत सरकार पबजी, टिकटाॅक की तरह फ़ेसबुक व्हाट्सएप पर प्रतिबंध लगाने वाली है तो दूूूूसरी ओर से उड़ते हुए ये भी खबर आ गई कि बाबा जुकरबर्ग फेसबुक कंपनी को बंद कर रहे हैं।
फिर क्या इस ख़बर से उपभोक्ताओं में खलबली मच गई।घबराहट और बेचैनी वैसी ही जैसी रेड और नोटबंदी के नाम पर कालाधन के मालिक की,शराबबंदी के नाम पर पियक्कड़ की,देवलोक पर असुरो के हमला से इंंद्र सहित देवताओ की !
महिला उपभोक्ता का ऑक्सीजन लेवल टेंशन में सोच सोच कर घटने लगा। चिंता भी जायज थी,आखिर
ब्यूटी प्लस,ब्यूटी एप्प आदि के द्वारा परिमार्जित की हुई अपनी सुंदर तस्वीरें, रसोई मे बनाई गई दाल-भात चोखा की तस्वीरें,बर्थ डे-सालगिरह की तस्वीरें,अपने हबी जानू के साथ वाली फोटो आदि फेसबुक और व्हाटसएप स्टेटस पर चेंपकर वाऊ,नाइस,ब्यूटीफुल,लुकिंग गुड आदि कमेंट्स हासिल करने का सुख जो उनसे छीनने वाला था।
फेसबुक की बंदी से सबसे ज्यादा प्रभाव फेसबुकिया कवि और साहित्यकार की इम्यूनिटी पर पड़ने वाला था।दिन में तीन टाइम फेसबुक लाइव कवि सम्मेलन में उपस्थित रहने वाले और चौदह व्हाटसएप साहित्यिक समूह के एडमिन वैसे ही बेरोजगार होने वाले थे जैसे लाॅकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर और दीवालिया होने पर फैक्टरी मालिक!
फेसबुकिया ग़ालिब,परसाई, प्रेमचंद खौफजदा थे।आईसीयू में शिफ्ट होने जैसी स्थिति आ गई थी।प्रति मिनट शायरी,कविता,गीत-गजल,कहानी,व्यंग्य का लूज मोशन करने वाले तथा दैनिक ऊलजलूल टाइम्स में प्रकाशित रचनाओं की प्रदर्शनी वाली इनकी दुकान पर लाॅकडाउन जो लगने वाला था।
जरूरत मंदों में दो केला और छः मास्क बाँटकर खींची गई सेल्फी को एफबी पर चिपकाने वाले समाजसेवी टाइप छुटभैया नेताजी व्यथित थे।
किसी मुद्दे पर सरकार और विपक्ष को गरियाने अथवा महिमा मंडन करते हुए एक दूसरे से फेसबुकिया युद्ध करने वाले विभिन्न राजनीतिक पार्टी के भक्त और चमचे आपस में 'बकथोथी सुख' खोने की आशंका से त्राहिमाम थे।
सभी उपभोक्ता वर्ग हलकान,व्यथित और बेचैन था किंतु फेसबुक का दो यूजर वर्ग ऐसा था जिसे एफबी बैन या बंदी की आ रही खबर से कोई फर्क नहीं पड़ा। मानो इनके हीमोग्लोबिन में सोशल मीडिया महामारी का एंटीबाॅडीज पहले ही तैयार हो चुका था।इनमे से एक वर्ग वह था जो सप्ताह या महीने मे एकाध बार फेसबुक खोल कर मित्रों के सभी प्रकार के पोस्ट को बिना पढ़े धड़ाधड़ लाइक ठोका करता था तथा दूसरा वह वर्ग था जो प्रतिदिन केवल गुड मार्निंग और गुड नाइट पोस्ट करने के लिए ही फेसबुक अकाऊंट को लाॅगइन करता था।
बहरहाल बंदी पर ना तो भारत सरकार ने कोई आदेश पारित किया और ना ही बाबा जुकरबर्ग ने। हालांकि भारत सरकार की नाम परिवर्तन नीति का अनुसरण करते हुए जुकरबर्ग बाबा ने भी फेसबुक कंपनी का नाम को मेटा में बदला जरूर लेकिन सोशल मीडिया सुविधाओं को बहाल रखा।नाम में क्या रक्खा है इस सोच के साथ फेसबुक,इंस्टाग्राम और व्हाटसएप की सेवाएँ निर्बाध जारी रहने से उपभोक्ता का ऑक्सीजन लेवल मेंटेन है, और वो फीलगुड कर रहे हैं।
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