" क्या बात है भई! हरी चूड़ी ,हरी बिंदी और नेल पॉलिश भी हरा ।"मोहित ने मेघा को सजते देखा तो बोल पड़ा।
" क्या! आप भी। तैयार हो तो दिक्कत ,ना हो तो दिक्कत।"
" अरे !जब तुम इस बरसात के मौसम में बिजली की तरह गरजती हो तो और प्यारी हो जाती हो।" मोहित ने प्यार से मेघा को गले लगा लिया।
"बहु! बहु।कपड़े उतार लाई छत से ।बारिश शुरू हो गई ।" मेघा मानो अपने सपनों से जागी।
" माँजी! ले आई थी ।"
"ठीक है! तू भी आराम कर ।थोड़ी देर बाद चाय ले आना।" "अच्छा माँजी!" मेघा आराम से खिड़की से बाहर सावन की बूँदों को देखने लगी। "कितनी प्यारी और मोहक होती थी ये बूँदे मेरे लिए ।आज ही के दिन पिछले साल कितने खुश थे हम। मोहित को यह बूँदें कितनी प्यारी लगती थी पर अब......"। मेघा की आँखों में भी सावन की बूँदे उतर आई। वह मोहित की तस्वीर की ओर देख पड़ी।"अब तो केवल तुम्हारी यादें हैं मेरे लिए ,मेरे साथ ।धरती माँ की सेवा करते करते तुमने अपना फर्ज बखूबी निभाया पर मुझ से किए वादे का क्या? इतनी जल्दी साथ छोड़ चले गए? साथ निभाने का वादा किया था तुमने। तुमने कहा था इस बार आऊँगा तो हम बारिश की बूँदों में खूब मस्ती करेंगे ,लॉन्ग ड्राइव पर जाएँगे....।"
" बहु !चाय ले।तू लेकर नही आई तो मैं ही आ गई।" पीछे खड़ी सीमा जी मेघा को उदास देख रो पड़ी। "तेरे लिए चाय लाई हूँ। तुझे पसंद है ना बरसात में चाय पीना। पर ...तू तो ...ना बेटा ना ....रोते नहीं सीमा जी ने मेघा के आँसू पोंछे ।उसे गले लगा लिया ।मोहित की कमी तो हम पूरे नहीं कर सकते बेटा पर हम हमेशा तेरे साथ है। तू अकेला क्यों समझती है खुद को? और मोहित अपनी निशानी भी तो छोड़ गया है तेरे पास।जो अभी तेरे गर्भ में पल रहा और तुझे देख रहा क्या सोचेगा देखो!मेरी मम्मा हमेशा रोती है ।"मेघा के चेहरे पर मुस्कान आ गई ।
"और बिंदी क्यों नहीं लगाई तूने ?याद है ना कि भूल गई।"
" याद है माँजी ।मोहित को मेरे माथे पर बिंदी बहुत अच्छी लगती थी ।वह भी सावन के महीने में हरी बिंदी ।"
" लगाया क्यों नहीं ?"
"अभी लगा लेती हूँ। पर मन नहीं करता ।"
"मन को तो बहलाना पड़ेगा ना ।बारिश हो रही तो इसका मतलब यह नहीं कि तू भी रोते रहे।चल पकौड़े खाते हैं ।"
"आप चलिए माँ । मैं आ रही हूँ।"
"ठीक है बेटा जल्दी आना ।"मेघा बिंदी लगाकर खुद को आईने में देखने लगी। "मोहित! मैं अच्छी लग रही हूँ ना। अब मैं नहीं रोऊँगी। देखो हँस रही हूँ ना ।तुमने कहा था सावन तुम्हारा फेवरेट सीजन है। इसे खूब इंजॉय किया करूँ पर क्या पता था अकेले करना होगा।फिर भी मैं करूँगी मोहित और तुम्हारी यादें तो है ही मेरे साथ और तुम्हारी निशानी भी। "मेघा की आँखों से सावन की बूँदें निकल पड़ी जो बाहर हो रही बूँदों की तरह रोके नहीं रुक रही थी।
डाॅ मधु कश्यप
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बढिया लिखा
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