अर्जुन इलाहाबादी

वर्मा

लिखने और पढ़ने का इतना जुनून की भूंख प्यास गायब हो जाती है। शिक्षा--/ MA पत्रकारिता नेट जे आर यफ बीएड सीटेट यूपी टेट Ncc म्यूजिक बहुत सारी मैगज़ीन और अखबारों में लेखन कार्य किया और रचनाएं पब्लिसड हुईं

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आजकल
आज उन बूढ़ी आँखों में जाने कैसा अहसास था। खाते में पेंशन नहीं आयी आज तंग उनका हाथ था। न खुद से कुछ कहते न अपनों से कुछ मांगते कभी। किसी अंजाने भय से आज उनका चेहरा उदास था। बहु की फ़रमाइशें और बेटे की जिल्लत से। तंग आ चुके थे वो रोज़ रोज़ की किल्लत से भरा पूरा परिवार भी उन्हें कितना गँवारा था। लग रहा था इस उम्र में वृद्धाश्रम ही सहारा था। जवानी गंवा दी जिन बच्चों की खुशी के लिए। तरस गये हैं होठ आज खुद की हँसी के लिए। खुदा करे कि कोई फिर रिटायरमेंट न हो। ख़ुशी मिले हमेशा मगर दुःख परमानेंट न हो। पास पैसे न हो तो अपने रिश्ते तोड़ जाते हैं। जिसे पाला था बहुत नाज़ों से साथ छोड़ जाते हैं। मैंने देखा है पैसे की अहमियत बहुत करीब से। थे चार पुत्र उनके मगर फिर बहुत गरीब थे। घर के बंटवारे में सब को एक एक कमरे मिले। बूढ़े माँ- बाप को आखिर कौन ले अपने मिले। चेहरे की झुर्रियाँ और बूढ़ी आँखों ने ये भी देख लिया। अपने ही कलेजे के टुकड़े ने उन्हें वृद्धाश्रम भेज दिया। मैं क्या कहूँ "अर्जुन" अब ऐतबार किसपे करूँ। किसे अपना कहूँ प्यार किससे करूँ......

Paperwiff

by arjunverma

अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त नई पीढ़ी की मानसिकता पर आधारित मेरी यह पहली कविता

04 Jan, 2021