उस विचार से ज़्यादा सशक्त कुछ नहीं होता, जिसका सही समय आ गया हो।
एक आदमी ज़मीन से लगभग 100 फ़ीट ऊपर अपनी मचान पर लटका रहता है। वह दिहाड़ी पर पुताई का काम करता है - ‘जीवन यापन’ करने के लिए उसका यही विचार है। उसके एक सहकर्मी ने पुताई करने की अपनी कुशलता को कुछ और निखार लिया है, इसलिए वह ठेके पर काम करता है - ‘जीवन यापन’ का यह एक और विचार है। एक अन्य व्यक्ति ने गाड़ी चलाना सीखा और एक व्यापारिक घराने में बतौर ड्राइवर नौकरी कर ली, वहाँ वह 14 घंटे काम करता है और इससे उसे अपने गुज़ारे लायक वेतन मिल जाता है - ‘जीवन यापन’ का यह उसका विचार है। ऐसे ही एक चतुर व्यक्ति ने एक कॉरपोरेट संस्थान में बतौर ड्राइवर नौकरी कर ली, जहाँ उसे वेतन के अलावा अन्य लाभ और सुविधाएँ भी मिल रही हैं - ‘जीवन यापन’ का यह एक अन्य विचार है। कोई भोजन बनाने के अपने कौशल से किसी घर में मासिक वेतन पर बतौर रसोईया नौकरी कर लेता है, जबकि ऐसा ही दूसरा व्यक्ति सड़क किनारे अपना ही ढाबा खोल लेता है और दैनिक लाभ कमाता है - ‘जीवन यापन’ के ये दो भिन्न-भिन्न विचार हैं। ध्यान दें कि उपर्युक्त हर व्यक्ति के पास ‘जीवन यापन’ का एक-एक विचार था जिसके लिए किसी शिक्षा या पूँजी निवेश की कोई पूर्व अपेक्षा नहीं थी।
‘जीवन यापन’ का आपका विचार सेल्समैन बनने का हो सकता है, तो किसी और का सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बनने का, तीसरे का एक उद्यमी बनने का, और चौथे का अपने पारिवारिक व्यापार से जुड़ जाने का… और ऐसे लोग भी हैं जो इस विचार में विश्वास रखते हैं कि इस संसार में ‘जीवन यापन’ के लिए कोई अवसर है ही नहीं।
हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि विशाल से विशाल उद्योग भी कभी केवल एक विचार ही था। हर क्रांति और हर सामाजिक संगठन कभी केवल एक विचार ही थे। आपके हाथ में यह जो पुस्तक है, यह भी कभी एक विचार ही थी।
उस विचार से ज़्यादा सशक्त कुछ नहीं होता, जिसका सही समय आ गया हो।
हालाँकि वह विचार क्या लाखों लोगों का पेट भरेगा या आपके ही छोटे से पेट को भर पाएगा? वह विचार आपको मात्र चार पैसे कमाकर देगा या आप पर करोड़ों की बरसात कर देगा? यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वह विचार किस तरह की सोच वाले व्यक्ति के दिमाग़ में पैदा हुआ है, और वह उस विचार का क्या करता है।
निष्कर्ष यह है… आप और आपके विचार मिलकर आपका संसार बदल सकते हैं…
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