स्वभाव का अर्थ ही है स्वयं का भावएम अर्थात अपना भाव हम सभी का अपना अपना कोई न कोई भाव है पर हम अपने अपने भावों में ने जी कर दूसरों के भाव को जीने लगते हैं कोई अफसरी के भाव में जी रहा है कोई धन के भाव में कोई पति होने के भाव में तो कोई सुंदर होने के भाव में अपने भाव में कोई है ही नहीं जब कोई अपने भाव में होता है तो वह वह नेशनल मंडेला बन जाता है आप अपने भाव में जीने लगीये फिर आप देखेंगे कि जिंदगी किस तरह से रूई की तरह हल्की हो गई कारण यह है कि आपको अपनी भाव में जीने के लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं करने पड़ेंगे प्रयास तो तब करना पड़ता है जब कौवा हंस की चाल चलने लगे हमें यह नहीं भूलना चाहिए जब हम स्वयं के भाव में जीने लगते हैं उसमें स्थित रहते हैं तो सर्वोत्तम प्राप्त करने के योग्य बनते हैं और जब सर्वोत्तम को प्राप्त कर लेते हैं तो हमारे अंदर आनंद का झरना बहने लगता है
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