हिंदी का विकास, देश का विकास

#poetry

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Shakeb
Shakeb 16 Sep, 2019 | 0 mins read

स्वर्गसे सुन्दर मेरी हिन्दी,

कोमल मात्राएँ कही कही बिंदी,

उसपर आपड़ा संकट अपार,

मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|


भावनाएँ मेरी उजागर कराती,

मुझको ज्ञान का पाठ पढ़ाती,

आज सह रही त्रिशूल हजार,

मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|


भांति भांति के शब्द भण्डार,

मुहावरों से भरा उसका संसार,

आज खदेड रहा उसे हर परिवार,

मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|


संस्कृत शब्दों को सरल बनाती है,

सूरदास तुलसी से मिलवाती,

अब कलयुगी मिट्टी में सिये संसार

मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|


मस्तिष्क में मेरे दीप जलाती,

क्या हे प्रेम मुझे ये सिखलाती,

मात्राएँ मानो बनी अंगार

मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|


वीरता के पथ पर ले जाती,

क्या है देश प्रेम मुझे ये सिखलाती,

अब कोठे पड रहे उसे हजार

मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|


फुल से फौलाद बनाती,

फौलाद से फुल बनना सिखाती,

ऐसा था उसका व्यापार,

मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|

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