स्वर्गसे सुन्दर मेरी हिन्दी,
कोमल मात्राएँ कही कही बिंदी,
उसपर आपड़ा संकट अपार,
मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|
भावनाएँ मेरी उजागर कराती,
मुझको ज्ञान का पाठ पढ़ाती,
आज सह रही त्रिशूल हजार,
मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|
भांति भांति के शब्द भण्डार,
मुहावरों से भरा उसका संसार,
आज खदेड रहा उसे हर परिवार,
मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|
संस्कृत शब्दों को सरल बनाती है,
सूरदास तुलसी से मिलवाती,
अब कलयुगी मिट्टी में सिये संसार
मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|
मस्तिष्क में मेरे दीप जलाती,
क्या हे प्रेम मुझे ये सिखलाती,
मात्राएँ मानो बनी अंगार
मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|
वीरता के पथ पर ले जाती,
क्या है देश प्रेम मुझे ये सिखलाती,
अब कोठे पड रहे उसे हजार
मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|
फुल से फौलाद बनाती,
फौलाद से फुल बनना सिखाती,
ऐसा था उसका व्यापार,
मेरी हिन्दी रही स्वर्ग सिधार|
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